नई दिल्ली, 16 अप्रैल, 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के विरुद्ध जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी सहित विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन पर आधारित तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पक्षों की दलीलें दो घंटे तक ध्यान से सुनीं। जमीअत उलमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व (याचिका संख्या 317/2025) में प्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने किया, जबकि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मंसूर अली खान हैं।
वकीलों ने अदालत में वक्फ अधिनियम की कई कमियों को उजागर किया, विशेष रूप से वक्फ के मूल ढांचे में बदलाव, वक्फ के लिए पांच साल तक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त, वक्फ बाय-यूजर की की समाप्ति और गैर-मुस्लिमों को वक्फ परिषद और बोर्ड में सदस्य बनाना शामिल हैं। यह ऐसी मूलभूत कमियां हैं जो भारतीय संविधान के मूल प्रावधानों के विरुद्ध हैं। इसके साथ ही इनके कारण वक्फ की शरई स्थिति प्रभावित हो रही है। अदालत को बताया गया कि वक्फ बाय-यूजर की समाप्ति की वजह से चार लाख संपत्तियां प्रभावित होंगी। इसके अलावा ऐतिहासिक धरोहर के महत्व की इमारतें जैसे जामा मस्जिद का दर्जा भी खतरे में पड़ जाएगा।
इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर वक्फ बाय-यूजर के आधार पर मान्य संपत्तियों को गैर-अधिसूचित किया गया तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे और बड़े परिवर्तन होंगे। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस दौरान ऐसे किसी भी कार्य से बचा जाए जो अपरिवर्तनीय प्रभाव के महत्व के हैं।
अदालत के समक्ष यह बात रखी गई कि नए कानून के तहत कलेक्टर को भूमि की जांच के दौरान वक्फ के दर्जे को निलंबित करने का अधिकार दिया गया है, जो मुस्लिम धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप के समान है। अदालत ने इस बात को भी ध्यान से सुना और इसकी गंभीरता को समझा। अदालत ने संकेत दिया कि वह अंतरिम आदेश देने पर विचार करेगी ताकि वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। मामले की सुनवाई कल अर्थात 17 अप्रैल, 2025 को दोपहर 2:00 बजे पुनः आरंभ होगी।
आज अदालत की कार्रवाई पर अपना पक्ष व्यक्त करते हुए जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि वक्फ एक धार्मिक ट्रस्ट है, जिसमें सरकारी वर्चस्व एवं एकाधिकार और वक्फ की स्थिति बदलने का कोई औचित्य नहीं है। हम अदालत से न्याय की की आशा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि भारत के संविधान के तहत हमारे धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाएगी। यह मुद्दा केवल मुसलमानों का नहीं है, बल्कि सभी अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा है। मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत ने अपनी कार्यकारी समिति की सभा में इस कानून के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा की थी, उस समय भी वक्फ बाय-यूजर के तहत लाखों संपत्तियों का मुद्दा चिंता का विषय रहा। आज मुख्य न्यायाधीश ने हमारी चिंता को और पुष्ट किया है। हालांकि, हम अदालत से न्याय और संविधान के शासन की आशा करते हैं।
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