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नफ़रत पूर्ण भाषा के ज़रिये उकसाई गयी हिंसा की रोकथाम के लिए सरकार को तुरंत कार्यवाई करने की ज़रूरत | एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया

"दिसंबर 2019 के बाद से, राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए नफरतपूर्ण भाषणों पर प्रधानमंत्री ने मौन बनाये रखा है। प्रधानमंत्री को रहनुमाई करते हुए बिना हिचकिचाये इन भाषणों की कठोर निंदा करनी चाहिए। हाल की और इससे पहले की हिंसा को भड़काने वाले इस तरह के भाषणों पर तुरंत, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की भी ज़रुरत है। लम्बे समय से नेताओं को दी गयी यह छूट अब खत्म होनी चाहिए,” एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा।

By: वतन समाचार डेस्क

नफ़रत पूर्ण भाषा के ज़रिये उकसाई गयी हिंसा की रोकथाम के लिए सरकार को तुरंत कार्यवाई करने की ज़रूरत | एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया

 

 

नफ़रत पूर्ण भाषा के ज़रिये उकसाई गयी हिंसा की रोकथाम के लिए सरकार को तुरंत कार्यवाई करने की ज़रूरत

 

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने आज कहा कि नफ़रत पूर्ण भाषणों के ज़रिये जो राजनीतिक नेता भारत में नफ़रत को हवा दे रहे हैं और हिंसात्मक माहौल पैदा कर रहे हैं, उन्हें तुरंत जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

 

“नई दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हुए दंगों में आठ लोग मारे गए हैं और 100 से अधिक घायल हुए हैं। जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुई हिंसा की तर्ज़ पर ही, इन दंगे के पहले भी राजनीतिक नेताओं द्वारा नफरतपूर्ण भाषण दिए गए थे। अनुराग ठाकुर जैसे केंद्रीय मंत्रियों से लेकर योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्रियों तक, चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा लोगों को 'देशद्रोहियों' को गोली मारने और बदला लेने के लिए उकसाया गया है। यह चौंकाने वाली बात है कि दिसंबर 2019 के बाद से, एक भी चुने हुए प्रतिनिधि पर नफरत और हिंसा भड़काने का मुकदमा नहीं दाखिल  किया गया है।  फरवरी 2020 में, कर्नाटक के एक मंत्री ने एक ऐसे कानून बनाने का आह्वान किया था जिसके तहत पुलिस को प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने की अनुमति होगी। किसी भी कानूनी कार्यवाही से छूट की यह स्थिति ही राजनीतिक नेताओं और अन्य गैर-राज्य व्यक्तियों को और भी ज़्यादा हिंसा भड़काने के लिए प्रोत्साहित कराती है। यह बात तब साफ़ हो जाती है जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने या उन पर हमला करने के बाद, दंगाई सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करते हुए कहते हैं कि 'दे दी आज़ादी'। दिल्ली में दंगों से एक दिन पहले भी, भाजपा के एक नेता, कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को जाफराबाद में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही जगह को खाली करवाने का अल्टीमेटम दिया था।”

 

"दिसंबर 2019 के बाद से, राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए नफरतपूर्ण भाषणों पर प्रधानमंत्री ने मौन बनाये रखा है। प्रधानमंत्री को रहनुमाई करते हुए बिना हिचकिचाये इन भाषणों की कठोर निंदा करनी चाहिए।  हाल की और इससे पहले की हिंसा को भड़काने वाले इस तरह के भाषणों पर तुरंत, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की भी ज़रुरत है।  लम्बे समय से नेताओं को दी गयी यह छूट अब खत्म होनी चाहिए,” एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा।

 

पृष्ठभूमि:

 

  • 22 फरवरी को, कई शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों ने नई दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास सड़क के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया। ये प्रदर्शनकारी, सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
  • 23 फरवरी को, भाजपा के नेता कपिल मिश्रा ने भड़काऊ भाषण दिया और दिल्ली पुलिस को जाफराबाद में प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए तीन दिन का अल्टीमेटम दिया।
  • 23 और 24 फरवरी को टकराव शुरू हो गए। दंगों में 7 से अधिक लोग मारे गए हैं।

 

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