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ज़िन्‍दा रहना है तो पानी को बचाना होगा

सतलुज-यमुना लिंक नहर के लिए हरियाणा और पंजाब के बीच झगड़ा है; कावेरी को लेकर कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल झगड़ रहे हैं; नर्मदा को लेकर गुजरात, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र और राजस्‍थान ने आस्‍तीनें चढ़ा रखी हैं। सोन नदी बिहार, यूपी और एमपी के बीच झगड़े का कारण है। यमुना नदी को लेकर पांच बड़े राज्‍यों में टकराव है। इसके अलावा कृष्‍ण नदी, गोदावरी, कर्मनाशा, महानदी, बराक नदी, अलेरा और भवानी नदी भी जहां जहां से गुज़र रही हैं कहीं न कहीं टकराव का कारण बनी हुई हैं। यह संघर्ष कभी कभी अधिक तीव्र भी हो जाता है।

By: वतन समाचार डेस्क

कलीमुल हफ़ीज़( कन्वीनर, इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स फ़ोरम, जामिया नगर, नई दिल्ली-25)

अगर यह कहा जाए कि पानी ही ज़िन्‍दगी है तो अतिशयोक्ति न होगी। इंसान ही नहीं पूरी कायनात की ज़िन्‍दगी पानी पर टिकी है। अगर पानी न हो तो इंसान और जानवर ही नहीं पेड़ और पौधे भी मर जाएंगे। हिंदोस्‍तान दुनिया में अकेला देश है जो भूगर्भीय जल का प्रयोग सबसे ज़्यादा करता है। यहां खेती के लिए भी 75 प्रतिशत पानी ज़मीन से ही हासिल किया जाता है और अनियोजित स्थिति के कारण इसका बड़ा हिस्‍सा व्‍य‍र्थ हो जाता है। हरित क्रांति से पहले खेती के लिए केवल 35 प्रतिशत पानी ज़मीन से हासिल किया जाता था।

 

आज 60-70 प्रतिशत इंसानों को पीने के साफ पानी उपलब्‍ध नहीं है। जमीन का जल स्‍तर लगातार कम होता जा रहा है। पर्यावरणविदों के अनुसार 2020 तक अनुमान है कि देश के 21 बड़े शहरों में भूगर्भीय जल संसाधन खत्‍म हो जाएंगे। उनमें दिल्‍ली, बेंगलूरू, हैदराबाद, चैन्नई और अन्‍य मुख्‍य शहर हैं। इसके साथ साथ 2030 तक देश के 40 प्रतिशत नागरिक ताज़ा पानी से वंचित हो जाएंगे। देश में 21 प्रतिशत बीमारियां केवल साफ पानी के न मिलने के कारण पैदा होती हैं। हमारे देश में  पहले  बहुत बारिश होती थी मगर पेड़ों की असीमित कटाई और नए पेड़ो के न लगाने के कारण बारिश का प्रतिशत 4 महीनों से घटकर औसतन 20 दिन पर आ गया है। यानी अब बरसात के सीज़न में बीस दिन ही बारिश होती है।

 

पानी के लिए पहले सिर्फ घरों में झगड़े होते थे, आज राज्‍यों और मुल्‍कों के बीच टकराव है। देश में पानी पर संघर्षों के कारण प्रतिदिन 3 क़त्‍ल होते हैं। पानी के मसले पर पाकिस्‍तान, बंगलादेश, नेपाल और चीन से हमारा पुराना टकराव है। देश के सभी राज्‍यों के अपने पड़ोसी राज्‍यों से पानी के झगड़े चल रहे हैं। कुछ मुक़दमे तो सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहे हैं।

 

सतलुज-यमुना लिंक नहर के लिए हरियाणा और पंजाब के बीच झगड़ा है; कावेरी को लेकर कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल झगड़ रहे हैं; नर्मदा को लेकर गुजरात, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र और राजस्‍थान ने आस्‍तीनें चढ़ा रखी हैं। सोन नदी बिहार, यूपी और एमपी के बीच झगड़े का कारण है। यमुना नदी को लेकर पांच बड़े राज्‍यों में टकराव है। इसके अलावा कृष्‍ण नदी, गोदावरी, कर्मनाशा, महानदी, बराक नदी, अलेरा और भवानी नदी भी जहां जहां से गुज़र रही हैं कहीं न कहीं टकराव का कारण बनी हुई हैं। यह संघर्ष कभी कभी अधिक तीव्र भी हो जाता है।

 

भूगर्भीय जल स्‍तर कम होने के कारणों में सबसे बड़ा कारण पेड़ों का कटान है। किसी ज़माने में हर आंगन में एक पेड़ होता था, मगर आज शहरी आबादी तो दूर अब गांव के मकानों तक में पेड़ नहीं पाए जाते। गांव में बच्‍चों का बचपन नीम की छांव में गुजरता था; सावन में नीम के पेड़ों पर झूला डालकर झूला जाता था, मगर आज के मशीनी दौर ने सबकुछ छीन लिया है। आज नीम के पेड़ ही नहीं हैं कि झूला डाला जा सके। बच्‍चों के पास सोशल मीडिया ने इतना वक़्त भी नहीं छोड़ा कि वह झूला झूल सकें। शहरों में आबादी बढ़ने के कारण आसपास के जंगल काट कर गगनचुंबी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। इंसानी ज़रूरतों के लिए कॉलोनियां बनाने वाले बिल्‍डर्स उपजाऊ ज़मीनों का बेरहमी से इस्‍तेमाल कर रहे हैं। दूसरी वजह यह है कि पानी के स्रोत के लिए तालाब ख़त्‍म कर दिए गए हैं। पहले हर गांव के किनारे तालाब होते थे; आज तालाब नाम की चीज़ से भी महरूम हैं। नई नस्‍ल तो तालाब की शक्‍ल व सूरत से भी अंजान है। इन तालाबों में साल भर पानी रहता था जिस से भूगर्भीय जल का स्‍तर बना रहता था और उनसे दूसरी बहुतसी ज़रूरतें पूरी होती थीं। तालाब की तरह कुएं भी गायब हो गए हैं। नदी और नहरों की तादाद में भी कमी आई है। जलस्‍तर कम होने की एक बड़ी वजह यह है कि पक्‍के मकानों, पक्‍की सड़कों नें भूगर्भ में जल पहुंचने के रास्‍ते ही रोक दिए हैं।  बड़े बड़े शहर जिनका क्षेत्र सैकड़ों मील तक फैला है, वहां पानी की एक बूंद भी भू गर्भ में जाने को तरसती है।

 

 एक कारण पॉलिथीन का प्रयोग भी है। पॉलिथीन कूड़े कचरे के रूप में जाकर जमीन को न केवल खराब करती है बल्कि पानी को भू गर्भ में जाने से भी रोकती है। इसके साथ ही पानी का ज़रूरत से अधिक प्रयोग भी पानी की कमी का कारण है। सबमर्सिबल के ज़रिए मिनटों में हजारों लीटर पानी टेंकों में भर लिया जाता है, वाशरूम में शॉवर खेालकर घण्‍टों पानी का लुत्‍फ लिया जाता है, कपड़े धोने से लेकर फर्श धोने के नाम पर एक आम घर में हजारों लीटर पानी बरबाद हो जाता है। पीने का पानी दिन प्रति दिन कम होता जा रहा है। इसके लिए बड़ी हद तक करप्‍शन ज़िम्‍मेदार है। यहां क़ानून तो सब मौजूद हैं लेकिन क़ानून पर अमल नहीं कराया जाता; चंद रूपयों के बदले इंसानी जानों के साथ घिनौना खेल खेला जाता है। कारख़ानों और फैक्ट्रियों के कचरे और ज़हरीले पानी के लिए बने हुए क़ानून किताबों की शोभा मात्र हैं।

 

पानी की इतनी विकट समस्‍या के बावजूद न तो अवाम में पानी के संबंध में संजीदगी पाई जाती है और न हुकूमतों में। मौजूदा दौर की हुकूमतें तो अपनी कुर्सी बचाने और अवाम के जज़्बात से खेलने के सिवा काम ही नहीं करतीं। अवाम की तरक़्क़ी व  खुशहाली और मुल्‍क के रोशन मुस्‍तक़बिल के लिए न उनके पास वक्‍त है और न बजट। पानी के संरक्षण के लिए समय रहते कोई मंसूबा नहीं बनाया गया तो विद्वानों की वो तमाम आशंकाएँ पूरी होंगी जिनका उल्‍लेख इस मज़मून में किया गया है। 

 

 

एक दुखद पहलू यह है कि उम्‍मते मुस्लिमा जिसे ख़ैरे-उम्‍मत कहा गया है उसकी तरफ़ से इस संबंध में कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती। बड़ी-बड़ी मिल्‍ली जमातें मौजूद हैं, उनके लाखों अक़ीदतमंद,भक्‍त हैं; मगर यह तंज़ीमें और जमातें कभी पानी के संरक्षण के लिए कोई राष्‍ट्रव्‍यापी अभियान नहीं चलातीं। उलेमा ए दीन और मस्जिद के इमाम अपनी तक़रीरों और ख़िताबों में पानी के संरक्षण पर बात नहीं करते। इस संबंध में इस्‍लाम की तालीमात भी मुशिकल से ही कभी सामने आती हैं। इस रवैये से गै़र मुस्लिम भाइयों में यह पैग़ाम जाता है कि मुसलमान केवल अपने बारे में सोचता है, उसे देश और यहां के वासियों की कामयाबी व तरक़्क़ी से कोई सरोकार नहीं है जबकि कु़रआन मजीद में पचास से अधिक बार पानी का ज़िक्र किया गया है, जहां पानी की अहमियत और फ़ायदों पर बात की गई है।  नबी ﷺ के क़ौल व अमल से साबित होता है कि आप स० ने पानी की फिजू़लख़र्ची को नापसंद  किया है। आप स० नहर के किनारे पर भी बर्तन में पानी लेकर वुज़ू करते ताकि ज़्यादा पानी का इस्‍तेमाल न हो, आप ﷺ ने ताक़ीद भी फरमाई कि अगर नहर के किनारे भी वुज़ू करो तो ज़्यादा पानी मत बहाओ। आप स० ने पानी को गंदा करने से मना किया, आप स० ने पानी पिलाने, कुंआ खुदवाने की ताक़ीद फरमाई। आप स० ने पानी की मुहैया कराने को सदक़ा जारिया का नाम दिया। इसके बावजूद आज़ादी के बाद मुसलमानों की तरफ से पानी बचाने या पानी के उपलब्‍ध कराने के लिए कोई नुमायां काम नहीं किया गया। 

 

 

पानी के संरक्षण के लिए हम सबको वृक्षारोपण अभियान में हिस्‍सा लेना चाहिए, हर ख़ाली जगह में पेड़ लगाए जाने चाहिए, पेड़ों को बगै़र ज़रूरत नहीं काटना चाहिए। अपने आसपास जहां भी ख़ाली जगह मिले, पौदा लगा दिया जाए। इसी के साथ पानी के अधिक प्रयोग को रोका जाए, गांव और शहरों में तालाब जो बंद कर दिए गए हैं उन्‍हें दुबारा इस्‍तेमाल में लाया जाए। पानी के स्रोत के लिए हर घर में सोख़्ते बनाए जाएं। हुकूमत को चाहिए कि वह नदी और नहरों की खुदाई और सफाई पर तवज्‍जो दे, उम्‍मते मुस्लिमा को पानी के संरक्षण के लिए उठ खड़ा होना चाहिए। पानी पर ही ज़िंदगी की निर्भरता है तो ज़िंदगी बचाने के लिए पानी बचाना ज़रूरी है-

 

                 ज़िंदगी सबकी है मौक़ूफ़ यहां पानी पर,

                 ज़िंदा रहना है तो पानी को बचाना होगा।

 डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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