दिल्ली के तुगलकाबाद में प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक रविदास मंदिर को केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिराना एक जघन्य अपराध है और इससे संत रविदास के करोड़ों शिष्यों और श्रद्धालुओं की भावनाओं का अपमान हुआ है। हम मांग करते हैं कि केंद्र सरकार दिल्ली के प्राचीन रविदास मंदिर का दोबारा निर्माण करवाए।
संत रविदास की याद में बना यह मंदिर जिस रोड पर स्थित है उसका नामकरण भी संत रविदास के नाम पर किया गया था। किवदंती के अनुसार जब संत रविदास बनारस से पंजाब की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने 1509 में इस स्थान पर आराम किया था। यहां पर एक बावड़ी भी बनवाई गई थी जो आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि स्वयं सिकंदर लोदी ने संत रविदास से नामदान लेने के बाद उन्हें यहां जमीन दान की थी जिस पर यह मंदिर बना था। आजाद भारत में 1954 में इस जगह पर एक मंदिर का निर्माण हुआ था।
वर्षों पुरानी इस धरोहर को बचाने के लिए केन्द्र की भाजपा सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए, जिससे उनका दलित विरोधी चेहरा एक बार फिर साफ उजागर हो गया है। सारे घटनाक्रम से लगता है कि रविदास समुदाय और दलित समुदाय को नीचा दिखाना भारतीय जनता पार्टी की नीति है। कभी वे एससी-एसटी एक्ट को समाप्त करते हैं, कभी दलितों पर अत्याचार करते हैं, कभी आरक्षण ख़त्म करने की बात करते हैं और अब गुरू रविदास के मंदिर पर हमला बोल दिया।
ऐसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर को गिराना जघ्न्य अपराध है तथा सरकार यदि चाहती तो रास्ता निकाला जा सकता था या सरकार अदालत में रिव्यू याचिका दायर कर सकती थी। लेकिन लगता है कि रविदास समाज और दलित समाज का अपमान करना, उन्हें नीचा दिखाना, भाजपा का तौर तरीका बन गया है। यह पूरी प्रक्रिया अशोभनीय और शर्मनाक है। सरकार द्वारा गिराए गए प्राचीन रविदास मंदिर को दोबारा बनाया जाए और अदालत से जो आदेश लेने हैं, वे लिए जाएं।
संसद में सरकार द्वारा दिए आधिकारिक जवाब से खुलासा हुआ है कि भारत सरकार में 89 सचिवों में केवल एक अनुसूचित वर्ग से है जबकि पिछड़ा वर्ग से कोई भी नहीं है, जो बेहद आपत्तिजनक है। इस खुलासे से साफ़ है की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की आधी आबादी दलित व पिछड़ों पर भरोसा नहीं करते और उनसे भेदभाव व अनदेखी अब भाजपा का रास्ता बन गया है। वे दलितो व पिछड़ों के विकास पर निरंतर आघात कर रहे हैं और प्रशासन चलाने में भी उनका साथ नहीं चाहते।
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