BY: MOHAMMAD AHMAD
नयी दिल्ली: तेलंगाना में टीआरएस को पूर्ण बहुमत मिलने के संकेतों के दरमियान पहली बार एम आई एम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी सामने आए. उन्होंने मीडिया से बातचीत में चंद्रबाबू नायडू पर अपना गुस्सा उतारा और काफी नर्वस दिखे. उन्होंने कहा कि चंद्रबाबू नायडू को होश के नाखून लेने चाहिए. चंद्रबाबू नायडू को यह करना चाहिए चंद्रबाबू नायडू को वह करना चाहिए. मैं आंध्रप्रदेश जाऊंगा और चंद्रबाबू नायडू लोकसभा में 2 सीट भी नहीं जीत पाएंगे "इंशा अल्लाह ताला".
ओवैसी के बयान से जहां उनके दिल में चंद्रबाबू नायडू के तईं साफ गुस्सा झलक रहा था वहीं उनके बयान में अहंकार भी साफ साफ नजर आ रहा था. असदुद्दीन ओवैसी जो खुद को एक मुसलमान कहते हैं और मुसलमानों के हितों की बात करने का दवा करते हैं, लेकिन उनका लहजा जिस तरह से था उसे साफ जाहिर है कि कहीं ना कहीं वह अपने मुसलमान होने को भूल गए.
असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी ने इस पूरे इलेक्शन में जिस तरह की बयानबाजी की है उस से भी साफ जाहिर था कि कहीं ना कहीं वह बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं. हालांकि यह आरोप हैं और लोकतांत्रिक में सियासी पार्टियां इस तरह के आरोप लगाती रहती हैं, लेकिन एक तरफ योगी की बयान बाजी और दूसरी तरफ अकबरुद्दीन ओवैसी और असदुद्दीन की बयानबाजी से इस बात का साफ संकेत मिल रहा था कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल काली है.
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस बात का दावा कर रहे हैं कि ओवैसी की पार्टी और बीजेपी दोनों की अंदर अंदर सांठगांठ है और अभी तक ना बीजेपी की तरफ से और ना ही ओवैसी के तरफ से इस संबंध में कोई बयान आया है. अगर यह वीडियो गलत है तो ओवैसी को चाहिए कि जितना जल्दी मुमकिन हो इस ताल्लुक से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें, ताकि लोगों के मन में जो शंका है वह दूर हो. यही ओवैस और उन की पार्टी के हित में है.
यही वजह है कि बीते रोज असदुद्दीन ओवैसी बाइक पर सवार होकर जब टीआरएस के मुखिया और तेलंगाना के कार्यवाहक मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव से मिलने पहुंचे तो साफ था कि वह इसी लिए गए थे कि अगर सीटें कम पड़ेगी तो "मजलिस" उनको सपोर्ट करने को तैयार है, लेकिन आज हालत यह है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति को ओवैसी के समर्थन की कोई जरूरत नहीं है और बेहतर होगा कि टीआरएस जितना जल्दी खुद को ओवैसी से अलग कर ले.
ओवैसी के लिए जरूरी है कि वह अपने अंदर बदलाव लायें. वह जिस तरह की भाषा और जिस तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है और वह जिस समाज के हित की बात करते हैं उस समाज के लिए भी ठीक नहीं है. यही वजह है कि उस समाज ने इस बार ओवैसी को पूरी तरह से नकार दिया है और अगर वह अब भी नहीं सुधरे तो आने वाले कल में वह अपनी लोकसभा सीट भी बचा ले जायेंगे कहा मुश्किल है.
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